Wednesday, 14 September 2016

Story of Ashtasakha

 अष्टसखा का परिचय!!!



  पुष्टिमार्ग के आचार्य श्री महाप्रभुजी और श्री गुंसाईजी ने श्री ठाकोरजी की सेवा में राग, भोग और श्रृंगार अंगीकृत करवाया है। उसमे से राग सर्वप्रथम हैं।भगवत्कृपा से प्रभु के साक्षात् दर्शन होते है और उनकी लिलाओं की अनुभूती होती है, तभी ह्रदय में से जो सहज गान प्रकट होता है उसे कीर्तन कहते है। श्री महाप्रभूजी और श्री गुंसाईजी  ने अपने अष्ट छाप भक्त कवियों द्वारा ठाकोरजी को रिझाने  के लिए कीर्तन सेवा प्रकार शुरू किया था। ज्यादातर कीर्तन व्रज भाषा में रचे हुए है। कीर्तन एक उच्च कक्षा का पवित्र साहित्य है। उसको पंचमवेद भी कहा जाता है। कीर्तन साहित्य के दो प्रकार है- १)लिलासम्बधि कीर्तन २)उपदेशात्मक कीर्तन
  श्री महाप्रभुजी ने सौप्रथम कुंभनदासजी को कीर्तन सेवा सौंपा था।उसके बाद श्री गुंसाईजी ने सुव्यवस्थित किया और ऋतू अनुसार विविध वाद्यो के साथ शास्त्रिय संगीत के पद्धति से कीर्तन प्रणाली शुरू किया। उसको हवेली संगीत भी कहा जाता है। उसे उत्तरभारतीय के बिलावल पद्धति का जाना जाता है।ध्रुपदधमार में कीर्तन का गान होता है। धमार एक प्रकार का ताल है। वाजिंत्र में तंतुवाद्य , पखावज और झाँझ का उपयोग होता है ।

यह था प्रारम्भिक परिचय। अष्टसखा के बारे और जानने के लिये हमारे दुसरे ब्लॉग का इंतेज़ार करे। जय श्री कृष्ण।।

    

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